'' تا ثیر ' ' محسن اسرار کا دوسرا مجموعہ ء غزل ہے جو 2009ء میں منظر-عام پر آیا اس سے قبل غزل کا ایک مجموعہ2007ء میں '' شو ر بھی ہے سنّا ٹا بھی ' ' کے نام سے بھی آچکا ہے۔
اگرچہ محسن اسرارنے سنہ60ء کی دہائی میں بحیثیت شاعر خودکومتعارف کرایا لیکن کلام کی اشاعت میں انھوں نے عجلت سے کام نہیں لیا بلکہ جب اُن کی مشق اور مطالعے نے اس کی اجازت دی اُس کے بعد وہ اشاعت کے لیے رضامند ہوے۔
اسی مجموعہ ء کلام میں '' رُ و بر و '' کے عنوان سے انھوں نے اپنے تاثّرات بیان کیے ہیں وہ طلسماتی اندازکے ہیں اور اُن کے گوناگوں رنگ ہیں۔
شعر تاثیر کے بغیرکوئی حیثیت نہیں رکھتابقول حسرت موہانی "-
شعر در اصل ہے و ہی حسر ت
سُنتے ہی دل میں جو اُتر جا ئے

دل میں بغیر تاثیر کے شعر نہیں اُترتا۔


غزل کو کسی نے گردن زدنی قرار دیا۔کوئی اِسے اُردو کی آبرو کہتا ہے اور کوئی اِسے حیاتِ اُردو کا سبب بتاتاہے۔
نظم کی افادیت اپنی جگہ لیکن یہ زندگی کا مشینی دور کس میں انسان معاشی طور پر
صبح سے شام تک لگارہتاہے گھرآنے کے بعد اُس کا تھکاہواذہن ہلکی پھلکی تقریریاتحریر
ہی کا متحمّل ہوسکتا ہے اوریہ کام غزل ہی انجام دے سکتی ہے۔
محسن اسرار کے کلام میں آپ کو الفاظ میں عذوبت بیان میں دل کشی اور لہجے میں جاذبیت نظرآئے گی۔افسانوی کیفیات میں صداقت کا پلّہ بھاری نظرآئے گا جو اُن کے اپنے مشاہدات پرمبنی ہے اورجس کے چندنمونے یہ ہیں :-
سوچیے تو سب کے سب ہیں قید میں
دیکھیے تو سب کے سب آ ز ا د ہیں
کہاں گیا مرارستہ کہاں گئی مر ی منزل::کہاں ہے تُو مری حیرت سوال کرتی ہے
مرے وجُود کی قیمت ہی کچھ نہ ہو جیسے
کہ جو مِلا و ہ مِلا ہے تر ے حو ا لے سے
بغیرخواب کی تعبیر اوروہ بھی سچ
کبھی کبھی تو محبّت کمال کرتی ہے
میں کیا وہ کیا اِس دُنیا میں
کو ئی بھی تنہا ہو سکتا ہے
خِراجِ جاں چُکانا پڑرہا ہے
دُ کھوں میں مُسکراناپڑرہاہے
مُحسن اسراراپنے جذبات کے بیان کرنے کا قرینہ جانتے ہیں جن میں بے ساختگی بھی
ہوتی ہے اور جاذبیت بھی۔اُمیّد ہے کہ وہ اپنے آ یندہ مجموعہ ہائے کلام میں سماعتوں اور
نظروں کے لیے سامان فراہم کرتے رہیں گے۔اُن کے مُندرجہ ذیل چند اشعارپر ہی اکتفاکرتے
ہوے مضمون کوختم کیا جارہا ہے اس لیے کہ وقت کی قلّت اورمشینی دور نے لوگوں سے
فرُصتِ مُطالعہ بھی چھین لی ہے:
ہم نے تو گریباں کو رفو کرہی لیا ہے:::تُو جان ترے شہر میں ہوتاہے کہاں کیا
گُریز کرتی رہی خلقتِ خُدا مجھ سے
مجھے تویاد نہیں میں نے کیا گناہ کیا
ہر اک سُو شور برپا ہورہا ہے:: مری دُنیا تُجھے کیا ہورہا ہے؟
محسوس ہورہا ہے وہ آ ئے گا شام کو
سُورج نہ جانے آج ڈحلے گا بھی یا نہیں
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گوگل ہندی ترجمہ
ईद मिलने गए तो हम आदरणीय नसीरकोटी को मोहसिन भाई काशिरी संग्रह 'प्रभाव' प्रस्तुत किया और अनुरोध किया कि'' शिक्षक अपने विचार लिख दें होगा'' लीजिए हमारे अनुरोध पर लिखा तातराती विचार व्यक्त मौजूद है: 
ताकि तीर आ और आर मोहसिन रहस्य 
'' इतना तीर 'मोहसिन रहस्य का दूसरा सेट ए ग़ज़ल जो 2009 में दृश्य - आम में आया इससे पहले ग़ज़ल का एक संग्रह 2007 में' शो आर भी सुना टा भी 'के नाम से भी आता है. 
हालांकि मोहसिन रहस्य वर्ष 60 के दशक में बतौर कवि सुदिोमपारफ कराया लेकिन कलाम प्रकाशन में उन्होंने जल्दबाजी से काम नहीं लिया बल्कि जब अभ्यास और अध्ययन ने यह अनुमति दी उसके बाद वह प्रकाशन के लिए सहमत हुए. 
इसी संयोजन ए वर्ड में 'आर और निर्यात और'' शीर्षक से उन्होंने अपने नज़रिया बयान की वो ्लसमाती ान्दाज़के हैं और उनके विभिन्न रंग. 
शेर प्रभावशीलता के बगीरकोई स्थिति नहीं रखताबकोल हसरत मोहानी "- 
शेर दरअसल है और ही हसर त 
सुनते ही मन में जो उत्तर जाए 
दिल में बिना प्रभावशीलता के शेर नहीं उतरता. 
ग़ज़ल को किसी ने गर्दन ज़दनी बताया. कोई उसे उर्दू की आबरू कहता है और कोई इसे जीवन उर्दू का कारण बताता है. 
कविता उपयोगिता अपनी जगह लेकिन यह जीवन मशीन दूर कैसे मनुष्य आर्थिक रूप से 
सुबह से शाम तक लगारहताहे परिवार के बाद उसका थकाहवाज़हन हल्की फुल्की तकरीरिया्षरीर
ही बर्दाश्त हो सकता है और यह काम ग़ज़ल ही अंजाम दे सकती है. 
मोहसिन रहस्य वर्ड आप शब्दों में िज़ोबत कथन दिल कल्पना और लहजे में जाज़बयत नज़र आए होगी. पौराणिक दशाओं में सच्चाई का पलड़ा भारी नज़र आए होगा जो अपने हिट आधारित है जिसके चन्दनमूने हैं: - 
सोची तो सब हैं कैद में 
देखें तो सब आ छ क घ हैं 
कहाँ गया मरारसतह कहां गई मर ै मंजिल :: कहाँ है तो मेरी हैरानी सवाल करती है 
मरे अस्तित्व की कीमत कुछ न हो जैसे 
जो मिला और यह मिला है ज्यादातर एस हो आ लेकर 
बगीुरवाब व्याख्या वह सच 
कभी कभी तो प्यार कमाल करती है 
क्या वे इस दुनिया में 
कोई भी अकेला हो सकता है 
श्रद्धांजलि जां चुकाना पड़ रहा है 
दु खों में मस्क्रानापड़रहाहे 
मोहसिन ासरारअपने भावनाओं के बयान का करीनह जानते हैं जो बे साखतगी भी 
होती है और जाज़बयत भी. उम्मीद है कि वह अपने आ ीनदा संयोजन संयुक्त वक्तव्य में सुनवाइयों और 
दृष्टि के लिए उपकरण प्रदान करते रहेंगे. उनके नीचे कुछ ाशारपर ही ाकतफ़ाकरते 
हुए लेख कोखतम किया जा रहा है क्योंकि समय की कमी ाोरमशीनी दूर लोगों से 
अवकाश अध्ययन भी छीन ली है: 
हम तो गरीबां को झकना कर ही लिया है :: तो जान तेरे शहर में होता कहां 
परहेज करती रही भीड़ भगवान मुझसे 
मुझे तोयाद नहीं मैं क्या पाप किया 
हर इक सौ शोर बरपा रहा है :: मेरी दुनिया तुझे क्या हो रहा है? 
लग रहा है वह आ जाएगा शाम 
सूरज न जाने आज डहले होगा भी या नहीं 
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